पर्यटन स्थल
कुल्लू गर्मी के मौसम में लोगों का एक मनपसंद गंतव्य है। मैदानों में तपती धूप से बच कर लोग हिमाचल प्रदेश की कुल्लू घाटी में शरण लेते हैं। यहां के मंदिर, सेब के बागान और दशहरा हजारों पर्यटकों को कुल्लू की ओर आकर्षित करते हैं। यहां के स्थानीय हस्तशिल्प कुल्लू की सबसे बड़ी विशेषता है।
रघुनाथजी मंदिर
इस मंदिर का निर्माण राजा जगत सिंह ने 17वीं शताब्दी में करवाया था। कहा जाता है कि एक बार उनसे एक भयंकर भूल हो गई थी। उस गलती का प्रायश्चित करने के लिए उन्होंने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। यहां श्री रघुनाथ अपने रथ पर विराजमान हैं। इस मंदिर में स्थापित रघुनाथ जी की प्रतिमा राजा जगत सिंह ने अयोध्या से मंगवाई थी। आज भी इस मंदिर की शोभा देखते ही बनती है।
बिजली महादेव मंदिर
कुल्लू से 1४ किलोमीटर दूर पहाडी पर बना यह मंदिर यहां का प्रमुख धार्मिक स्थल है। मंदिर तक पहुंचने के लिए कठिन चढ़ाई चढ़नी होती है। यहां का मुख्य आकर्षण 100 मी. लंबी ध्वज़(छड़ी) है। इसे देखकर ऐसा ल्रगता है मानो यह सूरज को भेद रही हो। इस ध्वज़ (छड़ी) के बारे में कहा जाता है बिजली कड़कने पर इसमें जो तरंगे उठती है वे भगवान का आशीर्वाद होता है। इस ध्वज पर लग़भग हर साल बिजली गिरती है। कभी-कभी मंदिर के अन्दर शिवलिन्ग पर भी बिजली गिरती है जिस से शिवलिन्ग खऩ्डित हो जाता है। पुजारी खऩ्डित शिवलिन्ग को मक्खन से जोडता है जिस से शिवलिन्ग फिर सामान्य हो जाता है। इस मंदिर से कुल्लू और पार्वती घाटी का खुबसूरत नजारा देखा जा सकता है।
कुल्लु दशहरा
कुल्लु का दशहरा पूरे देश में प्रसिद्ध है। इसकी खासियत है कि जब पूरे देश में दशहरा खत्म हो जाता है तब यहां शुरु होता है। देश के बाकी हिस्सों की तरह यहां दशहरा रावण, मेघनाथ और कुंभकर्ण के पुतलों का दहन करके नहीं मनाया जाता। सात दिनों तक चलने वाला यह उत्सव हिमाचल के लोगों की संस्कृति और धार्मिक आस्था का प्रतीक है। उत्सव के दौरान भगवान रघुनाथ जी की रथयात्रा निकाली जाती है। यहां के लोगों का मानना है कि करीब 1000 देवी-देवता इस अवसर पर पृथ्वी पर आकर इसमें शामिल होते हैं।
वॉटर और एडवेंचर
कुल्लु घाटी में अनेक जगह हैं जहां मछली पकड़ने का आनंद उठाया जा सकता है। इन जगहों में पिरडी, रायसन, कसोल नागर और जिया प्रमुख हैं। इसके साथ ही ब्यास् नदी में वॉटर राफ्टिंग का मजा लिया जा सकता है। इन सबके अलावा यहां ट्रैकिंग भी की जा सकती है।
कुल्लु के आसपास दर्शनीय स्थल
नग्गर
यह स्थान करीब 1400 वर्षों तक कुल्लु की राजधानी रही है। यहां 16वीं शताब्दी में बने पत्थर और लकड़ी के आलीशान महल आज होटल में बदल चुके हैं। इन होटलों का संचालन हिमाचल पर्यटन निगम करता है। यहां रूसी चित्रकार निकोलस रोएरिक की एक चित्र दीर्घा है। इन सबके अलावा यहां विष्णु, त्रिपुरा सुंदरी और भगवान कृष्ण के प्राचीन मंदिर भी हैं।
जगतसुख
जगतसुख कुल्लु की सबसे प्राचीन राजधानी है। यह विज नदी के बायीं ओर नागर और मनाली के बीच स्थित है। यहां दो प्राचीन मंदिर हैं। पहला छोटा सा गौरीशंकर मंदिर और दूसरा संध्या देवी का मंदिर है।
देव टिब्बा
समुद्र से 2953 मी. की ऊंचाई पर स्थित इस जगह को इंद्रालिका के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि महर्षि वशिष्ठ ने अर्जुन को पशुपति अस्त्र पाने के लिए तप करने का परामर्श दिया था। इसी स्थान पर अर्जुन ने इंद्र से यह अस्त्र पाने के लिए तप किया था।
बंजार
यहां श्रृंग ऋषि का प्रसिद्ध मंदिर है। इन्हीं ऋषि की याद में यहां प्रति वर्ष मई के महीने में एक उत्सव का आयोजन किया जाता है। ठहरने के लिए पीडब्ल्यूडी का रेस्ट हाउस उपलब्ध है। कुछ दूरी पर ही जलोरी पास हे जो बन्जार से सिर्फ् १९ किलोमीटर दूर् हे जो गर्मियों में भी बर्फ् की चादर से लिप्त रह्ता हे। यहां से कुछ दूरी पर सियोल्सर नाम की झील है, जो देवदार के उंचे-उंचे पेडों के हरे भरे जंगल से घिरी हुई है जो बेह्द सुन्दर है और यहां पर एक नदी बहती है, जिसका नाम तीर्थन नदी है।
मणीकरन
यह स्थान कुल्लु से 43 किलोमीटर दूर है। यह जगह गर्म पानी के झरने के लिए प्रसिद्ध है। हजारों लोग इस पवित्र गर्म पानी में डुबकी लगाते हैं। यहां का पानी इतना गर्म होता है कि इसमें दाल और सब्जी पकायी जा सकती हैं। यह हिंदुओं और सिक्खों का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यहां गुरुद्वारे के साथ रामचंद्र और शिवजी का प्राचीन मंदिर भी है।
रुमसूसंपादित करें
यह स्थान कुल्लु से 25 कि॰मी॰ दूर नग्गर से पूर्व की और 7 कि॰मी॰ जाकर है। एस गाँव से होकर चन्द्राखनी और मलाणा जाते है। इस गाँव में बहुत सारे देवी देवता है पर इनमे प्रमुख भगवान शुभ नारायण है।